Reporter: Pappu Lal Keer
राजसमंद। काकरोली प्रज्ञा विहार तेरापंथ भवन महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्रीमहाश्रमण की सुशिष्या साध्वी मंजुयशा के पावन सान्निध्य में पर्युषण पर्व का 6 दिन जप दिवस के रूप में मनाया गया।
कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वी श्रीजी ने नमस्कार महामंत्र के मंगल संगान से किया। साध्वीवृंद ने पार्श्वनाथ की मंगल प्रस्तुति की। टी. पी. एफ के शिक्षित युवक युवतियो ने एक समधुर गीत प्रस्तुत किया। साध्वी श्रीजी ने प्रारंभ भगवान महावीर के 22 वे . 23, 24, 25 वे एवं 26वे27 वे भव का घटना क्रम से बताया। जन्म कल्याणक के बारे में भी बड़े विस्तार से बताते हुए आज का दिन जप दिवस' पर अपना मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा किसी मंत्र का एकाग्रता से किया हुआ जप आन्तरिक उर्जाको जागृत करता है। जप दो अक्षरों में विशेष ध्वनित होता है। जैसा कि एक श्लोक में बताया गया है - जकारो जन्मछेदक : पकारो पान नाशक:। तस्याज्ज पडति प्रोक्त: जन्म पाप
प्रणाशकः। जकार से भव परम्परा का नाश तथा पकार से भव-भव में संचित पाप विनष्ट होते हैं। इसी भावना के साथ जप शब्द की संरचना हुई। जैन आगमों में नमस्कार महामंत्र को चौदह पूर्वो से समुद्धत और जिन शासन का सार माना गया है। यहाँ तक उल्लेख मिलता है कि जिसके मानस पर नवकार की रेखाएं अंकित है, उसका संसार भी कुछ अनिष्ट नहीं कर सकता। शब्द ध्वनि की तरंगों के अनुसार हमारी भावधारा बनती है। उस भावधारा के अनुसार हमारा 3 आभामण्डल बनता है। पंच परमेष्ठी की चेतनाएं विशिष्ट आदर्शों के लिए तथा पवित्र होती है। इनके शब्दों के बार-बार उच्चारण से उनके आभामण्डल की किरणें हमारे चैतन्य में अवतरित होने लगती है। पवित्र चिन्तन एवं विचारों के आधार पर ही हमारा चिन्तन और व्यवहार पवित्र बनता है। जप यदि उपयुक्त आसन मुद्रा तथा अनुरूप चित्र एकाग्रता से किया जाए तो निश्चित उसकी अद्भुत निष्पत्ति मिलती है। साध्वी श्री जी ने एक सामूहिक मधुरस्वर लहरी में प्रेरणास्वद गीत प्रस्तुत किया।
प्रणाशकः। जकार से भव परम्परा का नाश तथा पकार से भव-भव में संचित पाप विनष्ट होते हैं। इसी भावना के साथ जप शब्द की संरचना हुई। जैन आगमों में नमस्कार महामंत्र को चौदह पूर्वो से समुद्धत और जिन शासन का सार माना गया है। यहाँ तक उल्लेख मिलता है कि जिसके मानस पर नवकार की रेखाएं अंकित है, उसका संसार भी कुछ अनिष्ट नहीं कर सकता। शब्द ध्वनि की तरंगों के अनुसार हमारी भावधारा बनती है। उस भावधारा के अनुसार हमारा 3 आभामण्डल बनता है। पंच परमेष्ठी की चेतनाएं विशिष्ट आदर्शों के लिए तथा पवित्र होती है। इनके शब्दों के बार-बार उच्चारण से उनके आभामण्डल की किरणें हमारे चैतन्य में अवतरित होने लगती है। पवित्र चिन्तन एवं विचारों के आधार पर ही हमारा चिन्तन और व्यवहार पवित्र बनता है। जप यदि उपयुक्त आसन मुद्रा तथा अनुरूप चित्र एकाग्रता से किया जाए तो निश्चित उसकी अद्भुत निष्पत्ति मिलती है। साध्वी श्री जी ने एक सामूहिक मधुरस्वर लहरी में प्रेरणास्वद गीत प्रस्तुत किया।
इस अवसर साध्वी चिन्मयप्रभा ने जप क्यों कैसे और कब करना इस विषय पर अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी चारुप्रभा ने भी अपनी भावाभिव्यति दी।
तेयुप के भूपेन्द्र चौरड़िया एवं सभा के विनोद बड़ाला ने आगामी कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी दी। आज जप दिवस पर भाई बहनों ने विशेष रूप से जप में भाग लिया। प्रज्ञा विहार तेरापंथ भवन में 24 ही घंटा नमस्कार महामंत्र का अखण्ड जप चल रहा। श्रावक श्राविकाओं, युवाओं, कन्याओं, आदि सभी इसमे अपना उत्साह से भाग ले रहे है। कल सुबह प्रज्ञा विहार भवन में साध्वीश्रीजी के सानिध्य में मास खमण तप कि तपस्या कर रही 3 बहनों का एवम् 8,9,11 की तपस्या करने वाले तपस्वियों का भी तेरापंथ समाज की ओर से तप अनुमोदना एवम् अभिनन्दन का कार्यक्रम भी होगा । साध्वी श्रीजी के मंगल पाठ से कार्यक्रम सानन्द संपन्न हुआ। समाज के 425 के करीब भाई बहन उपस्थित रहे थे।