ये ना शत्रु है किसीका
ना किसीका मित्र है
ये तो छोटासा विषाणू है
पर मानवता पे भारी है
कदम कदम संभल के चल
पर घर से तू मत निकल...।
ये ना खुद आयेगा
आयेगा तो ना जायेगा
ये तो है काल सबका
सबको ये उठायेगा
कि है एक बार भुल
अभी तो पगले संभल
घर से तू मत निकल....।
हसो गे तो फसो गे तुम
ना दो बुलावा म्रुत्यु को
हात ना मिलाओ इससे
नमस्कार दुर सेही सबको
ये भी कट ज्यायेंगे
दुख भरे सारे पल
पर घर से तु मत निकल....।
जिवन बढाही अनमोल है
जाना इसका मुल्य तुम
खयाल रखो अपना यारो
देश के जिम्मेदार सपुत तुम
माँ की ममता के आँगन में
झुमने दो खुशी के बादल
पर घर से तु मत निकल....।
- प्रा. डाँ. वैशाली धनविजय