Reporter: Pappu Lal Keer
राजसमंद। कांकरोली प्रज्ञाविहार तेरापंथ भवन महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्रीमहाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी मंजुयशा के पावन सान्निध्य मे पर्युषण पर्व में बहुत अच्छी धर्माराधना चल रही है। कई भाई-बहनो नेचंदन बाला के तेले तप का अनुष्ठान किया। आज "वाणी संयम दिवस" के रूप में मनाया। सैकड़ों भाई-बहनों आदि सभी ने घंटो घंटों मोन करके इस दिवस को बड़े उत्साह से मनाया गया।
प्रवचन का प्रारंभ साध्वी श्रीजी ने नवकार मंत्र का मंगल उच्चारण द्वारा किया सामूहिक पार्श्वनाथ की स्तुति का संगान किया गया। आज धोइन्दा की महिला मण्डल की बहनो ने एक सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। साध्वी श्रीजी ने भगवान महावीर के पूर्व जीवन दर्शन को व्यवस्थित रूप 16 वां 17वा, 18वा भव की घटना को व्याख्यायित करते हुए कर्म बंधन की प्रक्रिया को समझाया उसके साथ "वाणी संयम" पर उद्बोधन प्रदान करते कहा
भगवान महावीर ने भाषा के दो प्रकार बताए हैं- भाषा समिति और वचन गुप्ति। विवेक पूर्व बोलना भाषा समिति कहलाता है और भाषा पर पूर्ण संयम करना वचन गुप्ति कहलाता है। भाषा की तीन कसौटियां है- सत्य, संयम और प्रिय वचन। इन तीनों पर जो खरी उतरती है, वही भाषा सम्यग भाषा है। यह भाषा स्वयं के लिए और दूसरों के लिए सदा सुखकारी बनती है। भाषा का पहला पेरामीटर है - व्यक्ति की - सत्यता व प्रामाणिकता । असत्य भाषा का उतना ही मूल्य है जितना निष्प्राण शरीर का। जो व्यक्ति बात-बात में झूठ बोलता है, उसका विश्वास और प्रतीति सदा के लिए समाप्त हो जाती है। वह यदि यदा कदा सत्य भी बोलता है तो भी उसकी बात का कोई भरोसा नहीं करता। वाणी की सत्यता व्यक्ति के व्यक्तित्व की मौलिक पहचान बनती है। यदि वाणी की सत्यता अखण्डित रहती है। तो उस व्यक्ति को वाक सिद्धि भी प्राप्त हो जाती है। जो वह कहता है वह बात प्रायः सफल हो जाती है। वर्तमान मे सत्य निष्ठा टूटती सी जा रही है और झूठ का पलड़ा भारी होता जा रहा है। आज हर व्यक्ति के चिन्तन में यह कीटाणु घुस गया है कि कोरी सत्यता से हमारी जीवन यात्रा अच्छी तरह नहीं चल सकती क्योंकि आज सत्यवादी को खाया जा रहा है और झूठा बाजी मार रहा है। भविष्य में झूठ के परिणाम क्या होंगे इस बात से वह अनभिज्ञ है। पहले सत्यनिष्ठा को जगाने की अपेक्षा है, उसकी जागृति में वाणी की सत्यता स्वयं निखर जाती है।
भाषा की दूसरी कसौटी है- प्रियता और मधुरता। कटु बात को, कटू सत्य को हर कोई पचा नहीं सकता। मधुरता से बोला गया सत्य सबको प्रिय लगता है और सुपाच्य भी होता है। वाणी में सत्यता हो, प्रियता हो और मधुरता हो तो उसकी निष्यति भी यही है कि 'वाच: फलं फलं प्रीति कस नरूणं 'यानि अपनी वाणी श्रोताओं के मन में प्रीति पैदा करे ऐसी भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।"
भाषा की सत्यता-प्रियता के लिए संयत होना बहुत जरूरी है। वाचाल व्यक्ति के वचनों का कोई मूल्य नहीं होता। उसके वचनों की प्रियता और सत्यता भी सुरक्षित नहीं रह सकती। इसलिए व्यक्ति का कम एवं संयम से बोलना ही उसका गौरव बढ़ाता है। ऊपर से व्यक्ति चाहे कितना ही सुन्दर हो, श्रृंगारित हो, उसके अंतरंग व्यक्तित्व की पहचान तो वाणी का व्यवहार ही है। राजस्थानी भाषा में एक उक्ति है 'बोल्या का लाध्या'- परस्पर वार्तालाप के दौरान ही व्यक्ति का अंतरंग व्यक्तित्व छनकर पानी में तेल के बिन्दु की तरह " तैरने लगता है। इसलिए भाषा की गहराई को समझ कर हम सत्य मधुर एवं प्रिय भाषा का प्रयोग करें। "साध्वी श्री ने भाषा विवेक पर अच्छे उदाहरण देकर समझाया।
इस अवसर साध्वी चिन्मयप्रभा एवं साध्वी चारुपुजा ने एक सु मधुर गीत वस्तुत किया। साध्वी इन्दुप्रभा जी ने वाणी संग्रम पर अपनी सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति दी। सभी साध्वियों ने एक सामूहिक सुमधुर गीत प्रस्तुत कर सब को भाव विभोर कर दिया। मंगल पाठ से कार्यक्रम संपन्न हुआ। भाई बहनों की उपस्थिति बहुत ही सराहनीय रही।